Saturday, November 22, 2008
मानव जीवन कैसा हो
जिंदगी अपनी न खाने-खेलने में ही गंवाओ ! कटुवचन, परदोषदर्शन वृत्तिया मन में न लाओ !! देह मानुष की बड़े भाग्य से हमको मिली है ! जन्म सेवा को मिला है मत किसी का दिल दुखाओ !! आप जो बोते हो उसी को काटते समझो इसे ! इसलिए जितना बने उपकार करना चाहिए !! चाहते जो आपका सत्कार होना चाहिए ! तो आपके विस्वास का विस्तार होना चाहिए !! चाहते ब्यवहार जैसा दुसरे से आप है ! आपका पहले वही ब्यवहार होना चाहिए !!
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